श्री हरिशंकर परसाई हिन्दी के श्रेष्ठ व्यंग्य लेखक हैं। व्यंग्य लेखन में उन्हें प्रवीणता प्राप्त है। समाज, राजनीति, धर्म आदि सभी क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों को उन्होंने अपने व्यंग्य लेखन से व्यक्त किया है। उनके व्यंग्य अत्यन्त चुटीले एवं प्रभावकारी होते हैं तथा उनका उद्देश्य व्यवस्था में सुधार लाना है। सामयिक विषयों पर लिखी गई हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाओं ने पाठकों को बहुत कुछ सोचने-विचारने का अवसर प्रदान किया है। परसाईजी ने यद्यपि कहानियां, उपन्यास भी लिखे हैं किन्तु इन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि व्यंग्य रचनाओं से ही मिली है, टी आईये आज जाने इनके जीवन को करीब से…..
पूरा नाम | हरिशंकर परसाई |
जन्म | 22 अगस्त, 1922 |
जन्म भूमि | जमानी गाँव, होशंगाबाद ज़िला, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 10 अगस्त, 1995 |
मृत्यु स्थान | जबलपुर, मध्य प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखक और व्यंग्यकार |
मुख्य रचनाएँ | ‘तब की बात और थी’, ‘बेईमानी की परत’, ‘भोलाराम का जीव’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौरा’, ‘ज्वाला और जल’ आदि। |
विषय | सामाजिक |
भाषा | हिंदी |
विद्यालय | ‘नागपुर विश्वविद्यालय’ |
शिक्षा | एम.ए. (हिंदी) |
पुरस्कार-उपाधि | ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘शिक्षा सम्मान’, ‘शरद जोशी सम्मान’। |
प्रसिद्धि | व्यंग्यकार व रचनाकार |
नागरिकता | भारतीय |
विधाएँ | निबंध, कहानी, उपन्यास, संस्मरण |
हरिशंकर परसाई का जन्म | Harishankar Parsai Birth And Early Life
मध्य प्रदेश के इटारसी के नजदीक होशंगाबाद जनपद के जमानी गांव के रहने वाले थे उनका जन्म 22 अगस्त 1924 को हुआ था.हरिशंकर परसाई के पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद था और उनकी माता का नाम चंपा बाई था हरिशंकर परसाई चार भाई बहन थे उनके माता पिता का मृत्यु बचपन में ही हो गया था.जिससे सभी भाई बहनों के पालन पोषण का जिम्मेदारी हरिशंकर परसाई के ऊपर ही आ गया था उनका जीवन बहुत ही परेशानियों से और कठिनाइयों से बचपन में व्यतीत हुआ था हरिशंकर परसाई अपने बुआ के यहां रहते थे और वही से उन्होंने अपनी शिक्षा ग्रहण की थी.
हरिशंकर परसाई का बचपन | Harishankar Parsai Childhood
हरिशंकर परसाई के पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद और उनकी माता का नाम चंपा बाई था। परसाई जी के चार भाई बहन थे और उनके माता पिता का मृत्यु बचपन में ही हो गया था। जिससे सभी भाई बहनों के पालन पोषण का जिम्मेदारी हरिशंकर परसाई के ऊपर ही आ गया था। उनका जीवन बहुत ही परेशानियों से और कठिनाइयों से बचपन में व्यतीत हुआ था। हरिशंकर परसाई अपने बुआ के यहां रहते थे और वही से उन्होंने अपनी शिक्षा ग्रहण की थी। इन्होंने बाल्यावस्था से ही कला एवं साहित्य में रुचि लेना प्रारम्भ कर दिया था। वे अध्यापन के साथ-साथ साहित्य-सृजन भी करते रहे। दोनो कार्य साथ-साथ न चलने के कारण अध्यापन-कार्य छोड़कर साहित्य-साधना को ही इन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया ।
हरिशंकर परसाई की शिक्षा | Harishankar Parsai Education
उन्होंने अपना प्रारंभिक पढ़ाई अपने गांव जमानी से ही पूरा किए थे उसके बाद वह नागपुर चले गए और नागपुर विश्वविद्यालय से ही Harishankar Parsai ने M.A. हिंदी से पूरा किया था पढ़ाई पूरा होने के बाद उन्होंने वन विभाग में भी नौकरी किया. लेकिन वह नौकरी उन्होंने कुछ ही दिनों बाद छोड़ दिया और किसी स्कूल में अध्यापक के पद पर नौकरी कर लिया लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ दिए नौकरी छोड़ने के बाद Harishankar Parsai ने लेखन प्रारंभ किया उन्होंने अपना स्वतंत्र लेखन लिखना शुरू किया.
हरिशंकर परसाई का करियर | Harishankar Parsai Career
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत जंगल बिभाग में नोकरी से की। बाद में अपने पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया। इस दौरान वे साहित्य सृजन में लगे रहे। कुछ वर्षों के बाद उन्होंने नोकरी छोड़ दी और स्वतन्त्र लेखन में लग गए।
पत्रिका का सम्पादन |Harishankar Parsai Paper Career
नौकरी छोड़ने के बाद वे हिन्दी साहित्यिक पत्रिका के सम्पादन के क्षेत्र से जुड़ गए। सबसे पहले उन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ नाम की हिन्दी मासिकी पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन शुरू किया। लेकिन कुछ दिनों के बाद आर्थिक तंगी के कारण इस बंद करना पड़ा। उनके कॉलम कई प्रसिद्ध पत्रिका में छापते थे। उनकी नयी कहानियों में ‘पाँचवाँ कालम’¸ नई दुनिया में ‘सुनो भाई साधो’ और ‘उलझी–उलझी’ तथा कल्पना में ‘और अन्त में’ कॉलम छपते थे। उनका लेख हिंदुसतान साप्ताहिक और देशबंधु में भी छपते थे। जबलपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबार देशबंधु में उनका एक कॉलम ‘पूछिये परसाई से’ होता था। जिसमें वे पाठकों के प्रश्नों का जवाव देते हुए खूब लोकप्रिय हुए। कहा जाता था की उनका यह कॉलम इतना प्रसिद्ध था की पाठक उनके जबाव को पढ़ने के लिए अखबार का वेसब्री से इंतजार किया करते थे।
हरिशंकर परसाई का व्यक्तित्व | Writing Life of Harishankar Parsai
परसाई एक ऐसे कवि थे जिन्होंने समाज में फैले सामाजिक पाखंड कुप्रथा कुरीतियों अंधविश्वास आदि के खिलाफ अपनी रचनाओं से व्यंगात्मक और आध्यात्मिक तरीके से विरोध किया वह अपनी कलम के माध्यम से समाज को सुधारना चाहते थे लोगों को समाज में फैले अनछुए पहलू समाजिक पाखंड को दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया. हरिशंकर परसाई का पहचान एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार व्यंगात्मक रचनाएं लिखने से है. परसाई जी की सबसे पहली रचना पत्रिका में वसुधा नाम से प्रकाशन हुआ था उन्होंने अपने लेखक जीवन का शुरुआत जबलपुर से किया था.
उन्होंने अपनी रचनाओं से समाज के रूढ़िवादिता समाज की कई पुरानी रीति-रिवाजों का विरोध किया जिससे कि समाज में एक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुआ और हरिशंकर परसाई भारतीय हिंदी साहित्य में एक सामाजिक व्यंगकार की उपाधि से पहचाने जाने लगे. हरिशंकर परसाई जबलपुर में देशबंधु अखबार में पाठकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते थे उसमें मनोरंजन राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय इश्क फिल्मी सामाजिक मुद्दों से जुड़े जो भी क्वेश्चन होते थे उसका आंसर हरिशंकर परसाई देते थे.
परसाई जो भी रचनाएं लिखे हैं उसमें पढ़ने पर ऐसा लगता है कि उसमें सच्चाई है अपनापन है और जो भी पढता है उसे ऐसा महसूस होता है कि लिखने वाला लेखक उसके सामने ही बैठ कर के अपने मन की बात बोल रहा है परसाई जी की पहली रचना स्वर्ग से नरक जहां तक 1948 में प्रहरी पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। इस रचना में उन्होंने पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए लिखा था हरिशंकर परसाई कार्ल मार्क्स के विचारों से बहुत प्रभावित थे उन्होंने अपने कृतियों में पाखंड के खिलाफ व्यंग के द्वारा और सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करके विरोध किया है.
हरिशंकर परसाई का साहित्यिक जीवन | Literary Life of Harishankar Parsai
Harishankar Parsai ने पढ़ाई पूरी करने के बाद किसी स्कूल में अध्यापक के पद पर कार्य करना प्रारंभ किया लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लिखने की ओर अपना ध्यान आकर्षित किया और लिखना प्रारंभ कर दिया उन्होंने जबलपुर जाकर एक साहित्यिक पत्रिका वसुधा में प्रकाशन प्रारंभ किया. लेकिन इसमें उन्हें बहुत घाटा होने लगा जिस वजह से उन्होंने यह पत्रिका बंद कर दिया और अपना स्वयं का व्यंग उपन्यास कहानी सब लिखना शुरु कर दिया. उस समय समाज में अंधविश्वास और कुप्रथा बहुत सारी फैली हुई थी
उसी के ऊपर उन्होंने व्यंग लिखना शुरू किया उस समय राजनीति में भ्रष्टाचार और शोषण बहुत हो रहा था इस पर भी व्यंग लिखना शुरु कर दिया और लोगों के सामने सच्चाई लाने का प्रयास करने लगे उन्होंने प्रहरी नामक पत्रिका में भी प्रकाशन कार्य किया था। जिसमें उनकी पहली रचना स्वर्ग से नरक जहां तक है प्रकाशित हुई थी Harishankar Parsai ने जबलपुर में निकलने वाली एक अखबार देशबंधु में उत्तर देने का कार्य पाठकों को करते थे उनसे कोई भी फिल्म का या कोई भी सवाल पाठक पूछते थे उसका वह जवाब देते थे उस स्तंभ का नाम उन्होंने पूछिए परसाई से रखा था।
हरिशंकर परसाई का व्यक्तित्व | Personality of Harishankar Parsai
- परसाई एक ऐसे कवि थे जिन्होंने समाज में फैले सामाजिक पाखंड कुप्रथा कुरीतियों अंधविश्वास आदि के खिलाफ अपनी रचनाओं से व्यंगात्मक और आध्यात्मिक तरीके से विरोध किया।
- वह अपनी कलम के माध्यम से समाज को सुधारना चाहते थे, लोगों को समाज में फैले अनछुए पहलू, समाजिक पाखंड को दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया।
- हरिशंकर परसाई का पहचान एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार व्यंगात्मक रचनाएं लिखने से है। परसाई जी की सबसे पहली रचना पत्रिका में वसुधा नाम से प्रकाशन हुआ था। उन्होंने अपने लेखक जीवन का शुरुआत जबलपुर से किया था।
- उन्होंने अपनी रचनाओं से समाज के रूढ़िवादिता समाज की कई पुरानी रीति-रिवाजों का विरोध किया, जिससे कि समाज में एक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुआ और हरिशंकर परसाई भारतीय हिंदी साहित्य में एक सामाजिक व्यंगकार की उपाधि से पहचाने जाने लगे।
- परसाई जबलपुर में देशबंधु अखबार में पाठकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते थे। उसमें मनोरंजन राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, इश्क, फिल्मी, सामाजिक मुद्दों से जुड़े जो भी क्वेश्चन होते थे उसका आंसर हरिशंकर परसाई देते थे।
- परसाई जो भी रचनाएं लिखे हैं उसमें पढ़ने पर ऐसा लगता है कि उसमें सच्चाई है अपनापन है और जो भी पढता है उसे ऐसा महसूस होता है कि लिखने वाला लेखक उसके सामने ही बैठ कर के अपने मन की बात बोल रहा है।
- परसाई जी की पहली रचना स्वर्ग से नरक जहां तक 1948 में प्रहरी पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
- इस रचना में उन्होंने पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए लिखा था।
- हरिशंकर परसाई कार्ल मार्क्स के विचारों से बहुत प्रभावित थे उन्होंने अपने कृतियों में पाखंड के खिलाफ व्यंग के द्वारा और सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करके विरोध किया है।
हरिशंकर परसाई की रचनाएँ | Harishankar Parsai Writings/Works
हरिशंकर परसाई ने बहुत सारी कहानी उपन्यास निबंध और व्यंग लिखे हैं लेकिन उनकी पहचान एक व्यंग कार के रूप में ही होती है उनके रचनाओं की भाषा मातृभाषा होती थी उन्होंने अपने रचनाओं में भाषा शैली इस तरह का प्रयोग किया था जैसे कोई भी उसे पढेगा तो उसको ऐसा लगेगा की वह सारी घटना जो उस कहानी में या व्यंग में है। उनके सामने हो रही है वह ऐसे रचनाकार थे लोगों को यह महसूस होने लगता था कि लेखक उनके सामने बैठकर ही सारी कहानी सुना रहा है उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। उन्होंने अपने मेहनत के बल पर अपनी पहचान बनाई थी समाज में रूढ़िवादी कुप्रथाओं के विरुद्ध लिखते थे. उनकी रचनाएं कुछ इस प्रकार है….
हरिशंकर परसाई के निबंध | Harishankar Parsai Writings
- आवारा भीड़ के खतरे
- ऐसा भी सोचा जाता है
- अपनी अपनी बीमारी
- माटी कहे कुम्हार से
- काग भगोड़ा
- सदाचार का ताबीज
- प्रेमचन्द के फटे जूते
- वैष्णव की फिसलन
- ठिठुरता हुआ गणतंत्र
- पगडण्डियों का जमाना
- शिकायत मुझे भी है
- तुलसीदास चंदन घिसैं
- हम एक उम्र से वाकिफ हैं
- तब की बात और थी
- भूत के पाँव पीछे
- बेइमानी की परत
परसाई के हास्य व्यंग | Harishankar Parsai Humor
- विकलांग श्रद्धा का दौर
- दो नाक वाले लोग
- आध्यात्मिक पागलों का मिशन
- क्रांतिकारी की कथा
- पवित्रता का दौरा
- पुलिस-मंत्री का पुतला
- वह जो आदमी है न
- नया साल
- घायल बसंत
- संस्कृति
- बारात की वापसी
- ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड
- उखड़े खंभे
- शर्म की बात पर ताली पीटना
- पिटने-पिटने में फर्क
- बदचलन
- एक अशुद्ध बेवकूफ
- भारत को चाहिए जादूगर और साधु
- भगत की गत
- मुण्डन
- इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर
- तट की खोज
- खेती
- एक मध्यमवर्गीय कुत्ता
- सुदामा का चावल
- अकाल उत्सव
- खतरे ऐसे भी
- कंधे श्रवणकुमार के
- दस दिन का अनशन
- अपील का जादू
हरिशंकर परसाई की बाल कहानी | Harishankar Parsai Stories
- चूहा और मैं
- चिट्ठी पत्री
- मायाराम सुरजन
- हरिशंकर परसाई की लघु कथाएं
- अपना पराया
- रसोईघर और पखाना
- दानी चंदे का डर
- यस सर
- समझौता अश्लील
हरिशंकर परसाई के कहानी संग्रह | Harishankar Parsai Collection
- हंसते हैं रोते हैं
- जैसे उनके दिन फिरे
- भोलाराम का जीव
- दो नाक वाले लोग
हरिशंकर परसाई के उपन्यास | Harishankar Parsai Novels
- रानी नागफनी की कहानी
- तट की खोज
- ज्वाला और जल
हरिशंकर परसाई का व्यंग संग्रह | Harishankar Parsai Pomes
- वैष्णव की फिसलन
- दौड़ता हुआ गणतंत्र
- विकलांग श्रद्धा का दौर
हरिशंकर परसाई की लघुकथाएँ | Harishankar Parsai Short Stories
- चंदे का डर
- अपना-पराया
- दानी
- रसोई घर और पाखाना
- सुधार
- समझौता
- यस सर
- अश्लील
हरिशंकर परसाई के संस्मरण
- तिरछी रेखाएँ
- मरना कोई हार नहीं होती
- सीधे-सादे और जटिल मुक्तिबोध
हरिशंकर परसाई की कविताएं | Harishankar Parsai Pomes
- जगत के कुचले हुए पथ पर भला कैसे चलूं मैं?
- क्या किया आज तक क्या पाया?
हरिशंकर परसाई की पुस्तकें | Harishankar Parsai Books
- Nithalle Ki Diary – 2007
- Viklaang Shraddha ka daur – 2001
- Rani Nagfani ki Kahani – 1990
- Pagdandiyon Ka Zamana – 2001
- Vaishnav Ki Fislan – 2001
- Apni-Apni Beemari – 1999
- Tulsidas Chandan Ghisein – 2001
- Inspector Matadeen on the Moon: Selected Satires – 1994
- Hum Ek Umra Se Wakip Hain – 2001
- Thithurata Huaa Gantantra – 2019
- Awara Bheed Ke Khatare – 2005
- Mati Kahe Kumhar Se
- Apni-Apni Bimari ( Hindi )
- Niṭhalle kī ḍāyarī -1968
- Tirachi rekhaen
हरिशंकर परसाई की भाषा शैली | Harishankar Parsai Literature Language Style
हर कवि और लेखक के अपने लिखने का एक तरीका होता है स्वभाव होता है हरिशंकर परसाई की रचनाओं की भाषा व्यंग प्रधान भाषा होती थी उन्होंने अपने रचनाओं में सामान्य भाषा का प्रयोग किया है। जिसमें व्यंग के तीखेपन एकदम स्पष्ट दिखाई देता है परसाई जी ने हिंदी के साथ अंग्रेजी उर्दू आदि शब्दों का भी प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है जिस तरह मुंशी प्रेमचंद्र ने समाज में फैले पाखंड कुप्रथा कुरीति आदि को दूर करने के लिए अपनी रचनाओं के द्वारा विरोध किया.
उसी तरह हरिशंकर परसाई ने अपनी रचनाओं में व्यंग के माध्यम से समाज में फैले कुप्रथा कुरीतियों और सामाजिक पाखंडों को दूर करने का प्रयास किया उन्होंने कई कहानी संग्रह व्यंग संग्रह और उपन्यास लिखे हैं.हरिशंकर परसाई ने अपने लेखनी के बल पर समाज के गंभीर सवालों का उन्होंने लोगों के सामने व्यक्त किया। उनके बहुमूल्य योगदान के लिए बहुमूल्य रचना के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत भी किया गया विकलांग श्रद्धा का दौर हरिशंकर परसाई का एक व्यंग निबंध है जिससे कि समाज के विकलांगता को प्रदर्शित करते हैं.
हरिशंकर परसाई की काव्य की विशेषता | Harishankar Parsai Literature Features
परसाई जी ने जो भी काव्य लिखे हैं जो भी निबंध कहानी संग्रह उपन्यास लिखे हैं उनकी एक खास विशेषता है वह अपने निबंध उपन्यास कहानी के माध्यम से समाज में राजनीति में जो भ्रष्टाचार और शोषण फैला हुआ है। उसके खिलाफ उन्होंने करारा व्यंग किया है उनका मानना था कि जब तक समाज के तौर-तरीकों समाज के रहन-सहन का अनुभव नहीं हो सकता है तब तक कोई भी व्यक्ति वास्तविक साहित्य लिख नहीं सकता है अपनी व्यंग के माध्यम से ही सभी सामाजिक बुराइयों को दूर करना चाहते थे.
हरिशंकर परसाई की शैलीगत विशेषताएं | Harishankar Parsai Literature Style
हरिशंकर परसाई जी की रचनाओं में शैली की विविधता दिखाई पड़ती है। शैली के जो विविध रूप इनकी व्यंग्य रचनाओं में दिखाई पड़ते हैं उनमें से प्रमुख निम्न प्रकार हैं:
हरिशंकर परसाई की व्यंग्यात्मक शैली
व्यंग्यपूर्ण रचनाओं में इस शैली का प्रयोग प्रमुखता से किया गया है। इसमें जीवन के विविध क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों पर करारी चोट की गई है। भाषा अवसर के अनुकूल सरल, व्यावहारिक है तथा वाक्य छोटे-छोटे है। लाक्षणिक पदावली एवं व्यंजना शक्ति का उपयोग भी उन्होंने अपनी व्यंग्यात्मक शैली में किया है।
हरिशंकर परसाई की प्रश्नात्मक शैली
प्रश्नात्मक शैली में हरिशंकर परसाई जी प्रश्नों की झड़ी लगा देते हैं और फिर स्वयं ही उनका उत्तर भी देते हैं। ऐसे प्रश्न पाठक को भीतर तक झकझोर देते हैं और सोचने-विचारने को मजबूर कर देते हैं।
हरिशंकर परसाई की विवेचनात्मक शैली
हरिशंकर परसाई जी ने अपनी व्यंग्य रचनाओं में कहीं-कहीं वर्णन विवेचन भी किया है। ऐसे स्थलों पर भाषा में गम्भीरता है, संस्कृतनिष्ठ पदावली का प्रयोग है तथा वाक्य छोटे-छोटे किन्तु कसे हुए हैं।
हरिशंकर परसाई की सूत्रात्मक शैली
इस शैली में हरिशंकर परसाई गागर में सागर भरते हुए सूत्रों में बात कहते है और फिर उसकी व्याख्या करते है।
परसाई जी को मिले पुरस्कार | Harishankar Parsai Awards
हरिशंकर परसाई को उनके महान लेखनी के लिए पुरस्कार भी मिले हैं जैसे कि साहित्य अकादमी पुरस्कार शिक्षा सम्मान पुरस्कार, और डी लिट की मानद उपाधि से और शरद जोशी सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया था।
- ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- मध्य प्रदेश शासन द्वारा शिक्षा सम्मान से नवाजा गया।
- ‘जबलपुर विश्वविद्यालय’ द्वारा उन्हे डी.लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
- शरद जोशी सम्मान
हिन्दी साहित्य में योगदान | Harishankar Parsai In Hindi Literature
हरिशंकर परसाई का हिन्दी साहित्य में स्थान अविस्मरणीय है। उन्होंने हमेशा से सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों का विरोध किया। उनकी सरल और सुबोध भाषा शैली में पाठक को अपनापन दिखता था। उनकी रचना पढ़ने से पाठकगन खो जाते थे। लगता था की मानों लेखक उनके सामने ही पढ़ कर सुना रहे हो।
हरिशंकर परसाई की मृत्यु | Harishankar Parsai Death
परसाईजी का मृत्यु 10 अगस्त 1995 को हुआ था उनका मृत्यु मध्यप्रदेश के जबलपुर में ही हुआ था उनके मृत्यु से हिंदी साहित्य जगत से एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार का अंत हो गया. अपनी लेखनी के माध्यम से समाज राजनीतिक सामाजिक भ्रष्टाचार शोषण पाखंड विसंगति अंधविश्वास कुप्रथा कुरीतियां आदि को दूर करने की कोशिश वह हमेशा करते रहे हरिशंकर परसाई में खासियत था कि सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था में जो मध्यम वर्ग के लोग फंसते जाते हैं। सच्चाई को दबाया जाता है उसको बहुत ही अच्छे से पहचान जाते थे और उसको खोखली रीति-रिवाजों को वह अपने लेखनी के बल से विरोध करते थे प्रसिद्ध व्यंग्यकार की मृत्यु से हिंदी साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति हुई।
हरिशंकर परसाई के अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Harishankar Parsai FAQs
Ans. हरिशंकर परसाई एक भारतीय लेखक थे। वे आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात व्यक्ति कार और ठिठोलिया थे और अपनी सरल और सीधी शैली के लिए जाने जाते थे।
Ans. हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त 1922 में हुआ था।
Ans. हरिशंकर परसाई जी का जन्म होशंगाबाद में हुआ था।
Ans. हरिशंकर परसाई के माता का नाम चंपाबाई था और पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद था।
Ans. हरिशंकर परसाई के द्वारा रचित कहानियां – भोलाराम का जीव, हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिर आदि।
Ans. कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव। उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल। संस्मरण: तिरछी रेखाएँ आदि
Ans. हरिशंकर परसाई की मृत्यु 10 अगस्त 1995 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुई थी। मृत्यु के समय उनकी आयु 72 वर्ष थी।